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What is Dark Web| डार्क वेब क्या है?

डार्क वेब क्या है?

(What is Dark Web?)

दोस्तों, क्या आपको पता है Dark Web या Dark Internet क्या है? भारत में कई लोगों को सिर्फ ये पता है कि इंटरनेट  होता है। लेकिन जो लोग इसके बारे में जानते हैं वो सिर्फ इतना जानते हैं कि डार्क वेब का इस्तेमाल गलत काम करने के लिए ही होता है। कुछ लोग तो कहते हैं डार्क वेब अंधेरे वाला इंटरनेट है। लेकिन ऐसा नहीं है। इसका नाम Dark Web इसलिए है क्योंकि लोग इसके बारे में अंधेरे में होते हैं। इसमें सारा काम आईपी एड्रेस छिपा कर किया जाता हैं।। यह सामान्य इटंरनेट से अलग होता है, लेकिन काम ये भी सामान्य इटंरनेट के बराबर ही करता है । इसलिए आप इस पर बनी वेबसाइट को सामान्य वेबसाइट की तरह सर्च नहीं कर सकते हैं। इसके सर्वर का IP Address नहीं बताया जाता है और इस पर बनने वाली वेबसाइट किसी भी सर्च इंजन में नहीं दिखाई देती है। इसलिए जब किसी वेबसाइट के एड्रेस के बारे में न पता हो तो उस वेबसाइट तक पहुँच पाना बहुत मुश्किल है।

दोस्तों डार्क वेब का इस्तमेमाल सीक्रेट जानकारी तथा देश की सरकारी जानकारी या मिलेट्री ऑपरेशन्स की प्राइवेसी को बनाए रखने के लिए होता था। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक बढ़ती गई , वैसे-वैसे इसका गलत इस्तेमाल किया जाने लगा। इसको इस्तेमाल करने के लिए एक ब्राउजर(Browser) बनाया गया , जिसका नाम टोर(Tor) है जो कि फॉयरफॉक्स का ही मोडिफॉयड रूप है। इसे आप www.torproject.com से डाउनलोड कर सकते हैं। जब आप इसका आइकन देखेंगें तो आपको प्याज(Onion) दिखाई देगा। मतलब जिस तरह प्याज के छिलके में कई परतें होती हैं, उसी तरह आईपी एड्रेस की भी कई परतें बनती चली जाती है । जिससे सही आईपी एड्रेस का पता ही नहीं चलता है। जिससे इसकी प्राइवेसी बनी रहती है। इसी कारण इसका नाम डार्क वेब पड़ा और वेबसाइट्स की प्राइवेसी रखने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।

देखा जाए तो डार्क वेब कोई अवैध चीज नहीं है। इसे अमेरिका की नैवल रिसर्च लैबोरेटरी ने विकसित किया है और इस शोध की सारी फंडिंग अमेरिका विदेश मंत्रालय ने की है। अमेरिका ही अब इसकी फंडिंग कर रहा है। इसका मुख्य कार्य यूजर्स की पहचान और उसकी लोकेशन को छिपाना था। यह काम स्पूफिंग(Spoofing) के जरिए और जटिल पेचिदा ट्रैफिक रूटिंग के जरिए किया जाता है। इसमें ट्रैफिक कई सर्वर से होकर जाता है और हर सर्वर में अलग-अलग इन्क्रिप्शन लगा होता है।

डार्क वेबसाइट्स एक स्पेशल वेब सर्वर चलाते हैं, जो सारी सूचनांए सिर्फ टोर को डिलीवर करते हैं। सामान्य ब्राउजर को नहीं करते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि साइट और उसके विजिटर कभी भी अपना असली आईपी एड्रेस नहीं दिखाते हैं। इसलिए टोर पर भी काम करने वाली साइट्स को विजिटर्स के लिए एक-दूसरे को ट्रैक करना मुश्किल होता है। जबकि यूजर सामान्य इटंरनेट पर वेबसाइट को विजिट करता है तो उसे आईपी एड्रेस दिखाई देता है। इसी वजह से डार्क वेब , गलत काम करने वालों और ऑनलाइन क्राइम को अंजाम देने वाले लोगों की पहली पसंद होता है। इसे आप डीप वेब(Deep Web) भी कह सकते हैं। डीप वेब शब्द इंटरनेट के उन पेजेज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिनको इंटरनेट का कोई भी सर्च इंजन खोज नहीं पाता है। वे छिपे हुए होते हैं। उसी तरह डार्क वेब को भी कोई खोज नहीं पाता  है। ये अंधेरे में छिपे हुए होते हैं।

ऐसा नहीं है कि डार्क वेब सिर्फ टोर ब्राउजर से ही चलाया जा सकता है। इसके अलावा बहुत सारे ऐसे विकल्प मौजूद हैं, जिनके जरिए डार्क वेब काम करता है। इसमें खासतौर से I2P(आई2पी) का नाम लिया जा सकता है। इसका मतलब होता है  कि इनविजिबल इंटरनेट प्रोजेक्ट(Invisible Internet Project)। इसके नाम से ही जाहिर है कि इसमें भी यूजर और उसका आईपी एड्रेस अदृश्य रहता है। इसे भी खास प्रोटोकॉल के जरिए ही एक्सेस किया जा सकता है। अगर आपको पहले से वेबसाइट का पता नहीं मालूम है तो आप उसे नहीं एक्सेस कर पाएंगे। ऑनलाइन क्राइम की वेबसाइट सिल्क रूट ने इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया था। इसके जरिए नशीली दवाओं का कारोबार चलता था।

दोस्तों टोर ब्राउजर सिर्फ गलत कामों के लिए ही नहीं प्रयोग में लाया जाता है, बल्कि अगर इसका सही उपयोग किया जाए तो ये दुनिया भर के देशों के लिए बहुत उपयोगी तकनीक है। इसका इस्तेमाल करके सरकार अपने कम्यूनिकेशन को गोपनीय रख सकती है। दुनिया के देशों के बीच कम्यूनिकेशन को गोपनीय रखा जा सकता है। भारत का चाहें कोई भी विभाग हो , वायुसेना , थलसेना, जलसेना,संसद या रक्षा मंत्रालय , सभी खूफिया एजेंसियां हैकर्स के निशाने पर हमेशा रहती हैं। इनसे बचने के लिए डार्क वेब का इस्तेमाल किया जा सकता है।

अन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि गलत काम गलत ही होता है। अगर हमारे देश में हैकर्स हैं तो उन्हे रोकने के लिए एथिकल हैकर्स(Ethical Hackers) भी हैं जो इंटरनेट पर हो रहे गलत कामों को रोकने का कार्य करते रहते हैं। आने वाले पोस्टों में आपको एथिकल हैकर्स के बारे में भी बताएंगे।

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