What is Computer Networking | कम्प्यूटर नेटवर्किंग क्या है?
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दोस्तों, आज इंटरनेट पर सूचनाओं की कमी नहीं है। इन्हीं सूचनाओं के माध्यम से हम अपना भविष्य बना सकते हैं जैसे- कुछ सीखना हो या फिर किसी बिजनेस स्ट्रैटजी सीखनी हो। इंटरनेट विश्व के करोंडों, अरबों कम्प्यूटर्स का जाल सा है। इंटरनेट का प्रयोग हम केवल जानकारी प्राप्त करने के लिए ही नहीं करते बल्कि संदेशों का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं जिस प्रकार हम डाक से पत्र भेजते हैं। डाक से भेजा गया पत्र कई दिनों में पहुंचता है जबकि इंटरनेट के माध्यम से भेजा गया पत्र कुछ ही सेकेंड्स में प्राप्तकर्ता के मेल बॉक्स में पहुंच जाता है। आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे कि कम्प्यूटर नेटवर्क क्या है। कम्प्यूटर नेटवर्क कितने प्रकार के होते हैं। नेटवर्क टोपोलॉजी क्या होता है।
कम्प्यूटर नेटवर्क क्या है?
जब एक या एक से अधिक कम्प्यूटर आपस में किसी माध्यम से जैसे केबल से जुडें हों या फिर वायरलेस तरीके से जुडें हों और आपस में डाटा और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं तो यह आपस में एक नेटवर्क बनाते हैं। कम्प्यूटर में सबसे महत्वपूर्ण डाटा होता है। डाटा की गणना को प्रोसेस करने के बाद इसे सूचनाओं में बदला जाता है। अब यदि यह सूचना आपको घर बैठे-बैठे अपने किसी दोस्त को एक कमरे से दूसरे कमरें में या फिर कहीं दूर बैठे अपने बॉस या दोस्त को पहुंचानी हो तो आपको किसी न किसी माध्यम की जरूरत पड़ेगी। अब मान लीजिए कि यह कोई फाइल आपके पास ऑफिस में रखी है तो इसको अगर शहर में किसी व्यक्ति के पहुंचानी हो तो इसके दो तरीके हैं । पहला आप पेन ड्राइव या फिर सीडी या डीवीडी का इस्तेमाल कर सकते हैं और दूसरा यह कि अगर आपका कम्प्यूटर सेटेलाइट के माध्यम से आपके मित्र या आपके बॉस से जुड़ा हो तो आप सीधे इंटरनेट के माध्यम से भेज सकते हैं। इंटरनेट के माध्यम से भेजने पर आपके समय की बचत होगी। अगर संक्षेप में कहा जाए तो जब कई सारे कम्प्यूटर्स आपसे में एक-दूसरे में जुड़ें हो और आपस में डाटा को शेयर करते हों तो से कम्प्यूटर नेटवर्क कहते हैं।
कम्प्यूटर नेटवर्किंग का महत्व क्या है?
जैसा कि आप जानते हैं आज हम सूचना क्रांति के युग में जी रहे हैं। आज के दैनिक जीवन में हम सभी के लिए सूचनाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। ये सूचनाएं किसी भी माध्यम से प्राप्त की जा सकती हैं। सूचनाओं से सुरक्षित रखने लिए सबसे सही माध्यम कम्प्यूटर ही माना जाता है। कम्प्यूटर के माध्यम से महत्वपूर्ण सूचनाओं को पलक झपकते ही देश के किसी भी कोने में बड़ी ही आसानी से भेजा जा सकता है। नेटवर्किंग के माध्यम से आज केवल टेक्स्ट ही नहीं , वीडियो, फोटो, ऑडियो को भी आसानी से भेजा जा सकता है। आज से कुछ साल पहले यह लगता था कि क्या कभी हम लोग फोटो, वीडोयो आदि एक स्थान से दूसरे स्थान भेज सकते हैं लेकिन अब यह सब आसान सा हो गया है। नेटवर्किंग के माध्यम से आज एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से रू-ब-रू हो सकता है। आज हम सभी व्हाट्सअप का प्रयोग ज्यादा करते हैं तो ऐसा लगता है कि जिस व्यक्ति से हम बात कर रहे हैं वह हमारे पास है। इसका सबसे अच्छा उदाहण है वीडियो कॉलिंग जिसके माध्यम से घर बैठे दूरदराज देश के किसी भी व्यक्ति से ऐसे बात करते हैं जैसे ही वह व्यक्ति हमारे पास बैठा है।
कम्प्यूटर नेटवर्क के प्रकार
कम्प्यूटर नेटवर्क को एक कमरे में रखे कई सारे कम्प्यूटर्स के बीच या एक इमारत के विभिन्न कमरे में रखे कम्प्यूटर्स के बीच या एक शहर में विभिन्न इमारतों के विभिन्न कमरों में रखे कम्प्यूटर्स के बीच या एक देश के विभिन्न शहरों तथा विश्व के सभी देशों में लगे करोड़ों कम्प्यूटर्स को आपस एक दूसरे से जोडा जा सकता है। कम्प्यूटर्स के बीच की दूरी के आधार पर नेटवर्क को मुख्य तीन प्रकार के नेटवर्क में बांटा गया है।
1. LAN(Local Area Network):
LAN एक छोटा नेटवर्क होता है। इसका क्षेत्र सीमित होता है। इनका क्षेत्र एक कमरे में रखे कम्प्यूटर तथा एक इमारत के विभिन्न कमरों में रखे कम्प्यूटर्स तक ही सीमित होता है। इस नेटवर्क में जुड़े कम्प्यूटर्स की संख्या भी अपेक्षाकृत कम होती है। जब एक से अधिक कम्प्यूटर्स आपस में तार द्वारा एक छोटा सा नेटवर्क स्थापित करते हों तब यह नेटवर्क LAN कहलाता है। लैन छोटा नेटवर्क होने के कारण बहुत ज्यादा स्पीड से डेटा ट्रांसफर कर सकता है। इसकी दूसरी 0 से 10 किमी तक मानी जा सकती है।
2. WAN(Wide Area Network):
इस प्रकार के नेटवर्क का विस्तार LAN तथा MAN की अपेक्षा अत्यन्त विशाल होता है। इनका कार्यक्षेत्र एक देश से अन्य देशों तक फैला होता है। इसमें कम्प्यूटर्स को तार के माध्यम से या सैटेलाइट के माध्यम से जोड़ा जा सकता है। इस नेटवर्क के आधार पर घर बैठे-बैठे किसी अन्य देश में किसी दोस्त या ऑफिस में बैठे मैनेजर को उसके कम्प्यूटर पर सूचना को भेजा जा सकता है।
3. MAN( MetropolitanArea Network):
कई सारे LANs मिलकर MAN बनाते हैं । किसी एक शहर के नेटवर्क को MAN कहा जाता है। ये LAN से तो बड़े होते हैं लेकिन WAN से छोटे होते हैं। इन्हें भी तार या सैटेलाइट के माध्यम से जोड़ा जा सकता है।
नेटवर्क टोपोलॉजी
नेटवर्क स्थापित करने के लिए एक से अधिक कम्प्यूटर की आवश्यकता होती है तथा इन कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़ने के तरीके को नेटवर्किंग की भाषा में नेटवर्क टोपोलॉजी कहते हैं। नेटवर्क स्थापित करने के लिए हम कम्प्यूटर्स को अनेक प्रकार से जोड़ सकते हैं। मुख्य रूप से टोपोलॉजी चार प्रकार के होते हैं।
1. बस टोपोलॉजी(Bus Topology):
यह सबसे सरल विधि मानी जाती है। इसमें सभी नोड्स एक ही तार से जुड़े होते हैं। सारा डेटा इसी तार के माध्यम से एक नोड्स से सर्वर तथा सर्वर से नोड्स तक जाता है। इस तार या केबल को बस टोपोलॉजी की बैकबोन(बस) कहते हैं लेकिन अगर किसी वजह से बैकबोन केबल खराब हो जाए तो पूरा नेटवर्क बंद जो जाता है। इसे स्थापित करना आसान होता है तथा इसमें लागत भी कम आती है।
बस टोपोलॉजी के गुण
- इसमें सभी नोड्स एक ही केबल से सीधे जुड़े होते हैं।
- इसमें कम केबल और कम हार्डवेयर की आवश्यकता होती है।
- इसमें अतिरिक्त नोड्स को आसानी से बस में जोड़ा जा सकता है।
- इसमें एक नोड द्वारा भेजा गया डेटा पूरे नेटवर्क में प्रसारित होता है और जिसे संबंधित नोड स्वीकार करता है।
बस टोपोलॉजी के फायदे
- इसमें केबल की कम आवश्यकता होती है जिससे यह सस्ता होता है।
- इसे स्थापित करना और केबल को जोड़ना आसान होता है।
- इसमें नए डिवाइस को जोड़ना आसान होता है।
बस टोपोलॉजी की कमियां
- इसमें एक ही केबल पर एक से अधिक डेटा पैकेट्स भेजने से टकराव हो सकता है।
- इसमें केबल की लंबाई सीमित होती है जिससे नेटवर्क का आकार सीमित होता है।
- अगर केबल में कोई समस्या आती है, तो पूरे नेटवर्क का काम प्रभावित हो सकता है।
2. रिंग टोपोलॉजी(Ring Topology):
रिंग टोपोलॉजी (Ring Topology) एक प्रकार की नेटवर्क टोपोलॉजी है जहाँ प्रत्येक नोड (कंप्यूटर या अन्य डिवाइस) दो अन्य नोड्स से जुड़ा होता है, जिससे एक रिंग (गोला) जैसा नेटवर्क बनता है। इसमें डेटा एक नोड से दूसरे नोड तक क्रमवार तरीके से आगे बढ़ता है, जब तक कि वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच जाता।
रिंग टोपोलॉजी के विशेषताएँ
- इसमें प्रत्येक नोड अपने दो पड़ोसी नोड्स से जुड़ा होता है, जिससे एक गोलाकार संरचना बनती है।
- इसमें डेटा या तो क्लॉकवाइज या एंटी-क्लॉकवाइज दिशा में यात्रा करता है।
- डेटा एक समय में एक ही पथ पर चलता है, जिससे डेटा टकराव (collision) की संभावना कम होती है।
- कई रिंग टोपोलॉजी नेटवर्कों में, टोकन पासिंग विधि का उपयोग किया जाता है, जहाँ एक टोकन नेटवर्क में घूमता है और जिस नोड को डेटा भेजना होता है, वह टोकन प्राप्त करता है।
रिंग टोपोलॉजी के फायदे
- इसमें डेटा टकराव की संभावना कम होती है क्योंकि डेटा एक दिशा में यात्रा करता है।
- नए नोड्स को जोड़ना आसान होता है, क्योंकि यह रिंग की संरचना को प्रभावित नहीं करता।
- सभी नोड्स के लिए डेटा ट्रांसमिशन समय समान होता है।
रिंग टोपोलॉजी की कमियां
- यदि एक नोड या केबल विफल हो जाती है, तो पूरा नेटवर्क बाधित हो सकता है।
- अन्य टोपोलॉजी जैसे स्टार टोपोलॉजी की तुलना में डेटा ट्रांसफर की गति धीमी हो सकती है।
- रिंग टोपोलॉजी में नेटवर्क को मॉनिटर और मैनेज करना थोड़ा जटिल हो सकता है।
रिंग टोपोलॉजी का उपयोग
- लैन (LAN) में: छोटे स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क में।
- मैन (MAN) में: कुछ मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क्स में।
- विशिष्ट नेटवर्किंग आवश्यकताओं में: जहां डेटा टकराव को कम करने की आवश्यकता होती है।
3. स्टार टोपोलॉजी(Star Topology):
स्टार टोपोलॉजी (Star Topology) एक नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमें सभी नोड्स (कंप्यूटर या अन्य डिवाइस) एक केंद्रीय नोड (हब, स्विच या राउटर) से जुड़े होते हैं। यह केंद्रीय नोड नेटवर्क का मुख्य बिंदु होता है और सभी संचार इसी के माध्यम से होते हैं।
स्टार टोपोलॉजी के विशेषताएँ
- इसमें सभी नोड्स सीधे एक केंद्रीय नोड से जुड़े होते हैं।
- इसमें प्रत्येक नोड का अपना संचार पथ होता है, जिससे डेटा टकराव (collision) की संभावना कम होती है।
- यदि कोई नोड या केबल विफल हो जाती है, तो केवल वही प्रभावित होती है, बाकी नेटवर्क सामान्य रूप से काम करता रहता है।
स्टार टोपोलॉजी के फायदे
- इसमें नेटवर्क का विस्तार करना और नए नोड्स जोड़ना आसान होता है।
- इसमें प्रत्येक नोड का अपना अलग पथ होता है, जिससे डेटा टकराव की संभावना कम होती है।
- इसमें किसी नोड या केबल में समस्या आने पर उसे आसानी से ढूंढा और ठीक किया जा सकता है।
- केंद्रीय नोड के माध्यम से डेटा ट्रांसफर होता है, जिससे नेटवर्क का प्रदर्शन बेहतर होता है।
स्टार टोपोलॉजी की कमियां
- यदि केंद्रीय नोड विफल हो जाता है, तो पूरा नेटवर्क काम करना बंद कर देता है।
- केबल की लंबाई अधिक होती है और केंद्रीय नोड की लागत भी जुड़ती है।
- इसमें बड़ी संख्या में नोड्स के लिए केबलिंग करना जटिल हो सकता है।
स्टार टोपोलॉजी का उपयोग
- लैन (LAN) में: छोटे से मध्यम आकार के कार्यालयों, घरों, और शैक्षणिक संस्थानों में।
- वायरलेस नेटवर्क में: वायरलेस नेटवर्क में भी स्टार टोपोलॉजी का उपयोग होता है, जहाँ सभी डिवाइस एक वायरलेस राउटर से जुड़ी होती हैं।
- कॉर्पोरेट नेटवर्क में: बड़ी कंपनियों और संगठनों में जहाँ नेटवर्क का विस्तार और समस्या निदान महत्वपूर्ण होता है।
4. हाइब्रिड टोपोलॉजी(Hybrid Topology):
हाइब्रिड टोपोलॉजी (Hybrid Topology) एक नेटवर्क टोपोलॉजी है जिसमें दो या दो से अधिक विभिन्न नेटवर्क टोपोलॉजी (जैसे स्टार, रिंग, बस, और मेश टोपोलॉजी) का संयोजन होता है। यह विभिन्न टोपोलॉजी की ताकतों को मिलाकर एक लचीला और कुशल नेटवर्क संरचना प्रदान करती है।
हाइब्रिड टोपोलॉजी के विशेषताएँ
- इसमें विभिन्न टोपोलॉजी का संयोजन होता है, जिससे यह बहुत लचीली होती है।
- इसमें नेटवर्क को जरूरत के अनुसार डिजाइन और विस्तारित किया जा सकता है।
- यह विभिन्न नेटवर्क आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित की जा सकती है।
हाइब्रिड टोपोलॉजी के फायदे
- इसमें विभिन्न टोपोलॉजी की ताकतों का फायदा उठाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, स्टार टोपोलॉजी की सरलता और रिंग टोपोलॉजी की कुशल डेटा ट्रांसफर को मिलाकर।
- यह अधिक विश्वसनीय और स्केलेबल होती है क्योंकि इसमें विभिन्न नेटवर्क टोपोलॉजी का संयोजन होता है।
- इसमें यदि किसी हिस्से में समस्या होती है, तो केवल वही हिस्सा प्रभावित होता है और पूरे नेटवर्क पर इसका असर नहीं पड़ता।
- इसके अन्तर्गत नेटवर्क को भविष्य में आसानी से विस्तारित किया जा सकता है।
हाइब्रिड टोपोलॉजी की कमियां
- इसे डिजाइन और मेंटेन करना जटिल हो सकता है।
- विभिन्न टोपोलॉजी का संयोजन होने के कारण इसकी लागत अधिक हो सकती है।
- इसे मैनेज करने और मॉनिटर करने के लिए विशेष कौशल और उपकरणों की आवश्यकता हो सकती है।
हाइब्रिड टोपोलॉजी का उपयोग
- बड़े संगठन: जहां विभिन्न विभागों की अलग-अलग नेटवर्क आवश्यकताएं होती हैं।
- डेटा सेंटर: जहां उच्च विश्वसनीयता और प्रदर्शन की आवश्यकता होती है।
- शैक्षणिक संस्थान: जहां विभिन्न भवनों और परिसरों को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता होती है।
हाइब्रिड टोपोलॉजी के उदाहरण
- Hybrid Star-Ring: इसमें स्टार और रिंग टोपोलॉजी का संयोजन होता है। जैसे कि एक बड़े नेटवर्क के विभिन्न विभागों को स्टार टोपोलॉजी में कनेक्ट किया गया है और फिर इन विभागों को एक रिंग टोपोलॉजी के माध्यम से जोड़ा गया है।
- Star-Bus Hybrid: इसमें स्टार और बस टोपोलॉजी का संयोजन होता है। जैसे कि विभिन्न वर्गों को स्टार टोपोलॉजी में कनेक्ट किया गया है और फिर इन वर्गों को एक मुख्य बस से जोड़ा गया है।
नेटवर्किंग में Server और Client कम्प्यूटर क्या होते हैं?
Server:
सर्वर सबसे शक्तिशाली कम्प्यूटर होता है। जो क्लाइंट कम्प्यूटर द्वारा भेजी गयी मांग को पूरा करता है। जैसे जब आप वेब ब्राउजर से किसी वेबसाइट को खोलते हैं तो जो वेबसाइट आपने खोली है । उस साइट की जानकारी जिस कम्प्यूटर से आ रही है, वह कम्प्यूटर सर्वर कहलाता है।
- सर्वर कम्प्यूटर सबसे शक्तिशाली होने के कारण, ज्यादा प्रोसेसिंग पावर, ज्यादा रैम तथा ज्यादा स्टोरेज लेता है ताकि कई सारे क्लाइंट कम्प्यूटर्स को संभाला जा सके।
- इन्हें इस प्रकार डिजाइन किया जाता है ताकि यह बहुत लंबे समय तक चल सके।
- सर्वर में विशेष प्रकार का सॉफ्टवेयर होता जो हमें वेब पेज सर्व करना, फाइल स्टोरेज, फाइल शेयरिंग तथा डेटाबेस मैनेजमेंट जैसा कार्य करता है।
- यह क्लाइंट कम्प्यूटर्स को डेटा प्रोसेसिंग, फाइल शेयरिंग, एप्लीकेशन होस्टिंग जैसी सेवाएं प्रदान करता है।
Client:
Client Computer वह कम्प्यूटर होता है जो सर्वर से सेवाएं प्राप्त करता है। यह आपका पीसी, लैपटॉप, मोबाइल या फिर टैबलेट हो सकता है। क्लाइंट कम्प्यूटर सर्वर कम्प्यूटर की अपेक्षा कम शक्तिशाली होते हैं। क्लाइंट कंप्यूटर में एप्लीकेशन सॉफ़्टवेयर होता है जो उन्हें सर्वर से कनेक्ट करके सेवाएं प्राप्त करने में मदद करता है, जैसे वेब ब्राउज़र, ईमेल क्लाइंट, आदि।
Network Techniques
Peer to Peer:
नेटवर्किंग एक प्रकार की नेटवर्किंग तकनीक है जहां प्रत्येक कंप्यूटर एक-दूसरे के साथ सीधे जुड़े होते हैं और आपस में डेटा को शेयर करते हैं। इस नेटवर्किंग मॉडल में, कोई केंद्रीय सर्वर नहीं होता। यहाँ पीयर-टू-पीयर नेटवर्क के कुछ मुख्य बिन्दु हैं:
पीयर-टू-पीयर नेटवर्क की विशेषताएं:
- इसमें हर नोड सर्वर और क्लाइंट दोनों की तरह काम कर सकता है।
- इस मॉडल में कोई केंद्रीय सर्वर नहीं होता। सभी नोड्स स्वतंत्र रूप से डेटा का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
- नोड्स एक-दूसरे से सीधे डेटा शेयर करते हैं। यह डेटा ट्रांसफर तेजी से करता है।
- P2P नेटवर्क में नए नोड्स को जोड़ना सरल होता है और यह नेटवर्क पर ज्यादा बोझ नहीं डालता।
- किसी एक नोड के फेल होने पर भी नेटवर्क काम करता रहता है क्योंकि कोई केंद्रीय निर्भरता नहीं होती।
पीयर-टू-पीयर नेटवर्क के उपयोग:
- P2P नेटवर्क का उपयोग फाइल शेयरिंग में है । उदाहरण के लिए, BitTorrent प्रोटोकॉल।
- Blockchain Technology, जिसमें Bitcoin और अन्य क्रिप्टोकरेंसी शामिल हैं, भी P2P नेटवर्किंग पर आधारित होती हैं।
- कुछ इंस्टेंट मैसेजिंग सेवाएं P2P आर्किटेक्चर का उपयोग करती हैं ताकि डेटा का सीधा आदान-प्रदान हो सके।
- P2P मॉडल का उपयोग करके बड़े और जटिल कंप्यूटिंग कार्यों को कई नोड्स में विभाजित किया जाता है ।
पीयर-टू-पीयर नेटवर्क के लाभ:
- इसमें केंद्रीय सर्वर की आवश्यकता नहीं होती, जिससे सर्वर की लागत बचती है।
- इसमें डेटा का सीधा आदान-प्रदान होने से गति बढ़ती है।
- इसमें केंद्रीय सर्वर के बिना, नेटवर्क किसी एक नोड के फेल होने पर भी काम करता रहता है।
पीयर-टू-पीयर नेटवर्क के नुक्सान:
- इस नेटवर्क में प्रत्येक नोड स्वतंत्र रूप से डेटा साझा करता है, जिससे सुरक्षा जोखिम बढ़ जाते हैं।
- इसमें बिना केंद्रीय नियंत्रण के नेटवर्क को प्रबंधित करना मुश्किल हो सकता है।
- इस नेटवर्क में अवैध सामग्री का आदान-प्रदान आसान हो सकता है, जिससे कानूनी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
Client/ Server Architecture
सन् 1950 में नेटवर्क से जुड़े कम्प्यूटर्स के संदर्भ में सबसे पहले क्लाइंट/सर्वर शब्द का प्रयोग किया गया। क्लाइंट सर्वर सॉफ्टवेयर की तुलना Time Sharing कार्यप्रणाली पर आधारित Main Frame सिस्टम से की जा सकती है। यहां पर क्लाइंट शब्द से आशय एक ऐसी कम्प्यूटर मशीन से है जो सेवाओं का उपयोग करने के लिए प्रार्थना भेजती है जबकि सर्वर शब्द से आशय एक ऐसी कम्प्यूटर मशीन से है जो क्लाइंट की प्रार्थना पर उसे उपयुक्त उत्तर प्रदान करता है। सॉफ्टवेयर की संरचना के आधार पर एक कम्प्यूटर दोनो का काम कर सकता है यानि वह सर्वर तथा क्लाइंट भी बन सकता है।
क्लाइंट से निर्देश लेने के बाद इस प्रार्थना को अपने से बड़े प्रोग्राम, जिसे सर्वर कहते हैं, को भेजता है जोकि रिमोट कम्प्यूटर्स पर लोड किया जाता है। इस प्रकार क्लाइंट/सर्वर कार्यप्रणाली में रिमोट सर्वर पर टेलनेट नामक प्रोग्राम होता है जो क्लाइंट की प्रार्थना को सुनता है तथा क्लाइंट पर FTP प्रोग्राम होता है जो फाइल को सर्वर से लाने का कार्य करता है।
आपने क्या सीखा?
दोस्तों, आज के इस पोस्ट में आपने सीखा कि नेटवर्क क्या होता है। नेटवर्क कितने प्रकार के होते हैं। नेटवर्क टोपोलॉजी क्या होते हैं। इस पोस्ट में दी गयी जानकारी कम्प्यूटर के क्षेत्र में बहुत काम आती है। यदि आप बेसक कम्प्यूटर कोर्स करते हैं या फिर सीसीसी का कार्स या फिर O Level का कोर्स करते हैं । नेटवर्क से सम्बन्धित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं तथा कम्प्यूटर से जुड़े कोई भी परीक्षा में पूछे जाते हैं। नेटवर्किंग से सम्बन्धित और जानकारी हम लाते रहेंगे। यह पोस्ट आपको अच्छा लगा हो तो इसे लाइक करें और अगर आपके वाकई कुछ सीखा हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर जरूर करें। अगर आपके मन में कम्प्यूटर से सम्बन्धित कोई प्रश्न है या फिर आप किसी टॉपिक पर पोस्ट चाहते हैं तो आप हमें कमेंट कर सकते हैं। हमारा यह प्रयास रहेगा कि हम आपके प्रश्नों के उत्तर दें तथा आपके दिये हुए टॉपिक को पोस्ट के जरिए प्रकाशित करें।
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