OSI Reference और TCP/IP Model क्या है?
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Protocol: यह उन नियमों(Rules) का सेट है जो उन Frames, Messages या Packets के फॉर्मेट और अर्थ को नियंत्रित करता है, जो सर्वर एवं क्लाइंट के बीच परस्पर आते-जाते हैं।
Reference Model
सबसे ज्यादा प्रमुख Reference Model निम्न हैं:-
- OSI(Open Systems Interconnection) Reference Model
- TCP/IP(Transmission Control Protocol/Internet Protocol) Reference Model
OSI-ISO Model
विश्व के सारे कम्प्यूटर इसी मॉडल का उपयोग करते हैं। दुनियाभर में देशव्यापी एवं विश्वव्यापी डाटा कम्यूनिकेशन सुनिश्चित करने के लिए ISO- Internation Organisation of Standardization) ने यह मॉडल विकसित किया है। इसे Open System International Model(OSI) कहा जाता है और सामान्यत: यह OSI मॉडल कहलाता है। यह एक सम्पूर्ण संचार तंत्र में सात परतों या स्तरों अर्थात सात लेयर या लेवल को स्पष्ट करता है।
Layer 1: Physical Layer
- यह OSI Model की सबसे निचली लेयर है।
- यह एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक बिट्स भेजने के लिए उत्तरदायी होती है।
- यह Physical Connections को Activate, systematic एवं Deactivate करती है।
- यह नेटवर्क पर Unstructured एवं Raw data के ट्रांसमिशन एवं रिसेप्शन(प्रसारण एवं प्राप्ति) के लिए उत्तरदायी होती है।
- ट्रांसमिशन के लिए जरूरी वोल्टेज एवं डाटा रेट्स को फिजिकल लेयर में स्पष्ट किया जाता है।
- यह Digital/Analog Bits को Electrical या Optical Signals में बदलती है।
- इसी लेयर में Data Encoding भी की जाती है।
- यह लेयर यह दर्शाती है कि नेटवर्क में कितने पिन्स हैं? डाटा कब ट्रांसमिट किया जायेगा और कब ट्रांसमिट नहीं किया जायेगा और डाटा को कैसे सिंक्रोनाइज किया जा सकेगा।
Physical Layer के कार्य:
- Representation & Bits: इस लेयर में डाटा में बिट्स की Series होती है। ट्रांसमिशन के लिए बिट्स को सिग्नल्स में Encode किया जाता है। यह Encoding के प्रकार को स्पष्ट करती है। जैसे – 0 और 1 सिग्नल्स में कैसे बदलते हैं।
- Data Rate: यह लेयर ट्रांसमिशन की दर को दर्शाती है कि प्रति सेकेण्ड बिट्स दर क्या है।
- Synchronization: यह Transmitter और Receiver के Synchronization से सम्बन्धित है। Sender और Receiver बिट लेवर पर सिंक्रोनाइज होते हैं।
- Interface: Physical Layer Devices एवं Transmission Medium के बीच के ट्रांसमिशन इंटरफेस को स्पष्ट करती है।
- Line Configuration: यह लेयर डिवाइसेज को कनेक्ट करती है, जैसे कि Point-to-Point Configuration या Multipoint Configuration.
- Topologies: डिवाइसेज को Mesh, Star, Ring और Bus Topologies से कनेक्ट किया जाना चाहिए।
- Transmission Mode: फिजिकल लेयर दो डिवाइसेज के बीच ट्रांसमिशन की दिशा को स्पष्ट करती है जैसे – Simplex, Half Duplex, Full Duplex
- यह बेसबैंड और ब्रॉडबैंड ट्रांसमिशन से सम्बन्धित है।
Layer 2: Data Link Layer:
नोड से नोड तक डाटा पहुंचाने के लिए यह बहुत पॉपुलर मॉडल है। यह उन Packets से Frames निर्मित करता है जो नेटवर्क लेयर से प्राप्त होते हैं और उन्हें फिजिकल लेयर तक पहुंचाते हैं। यह उन सूचनाओं को भी Synchronize करता है जो डाटा पर ट्रांसमिट की जानी है। इस लेयर में गलतियों को बेहतर तरीके से कंट्रोल किया जाता है। इसके बाद भी Encoded data को फिजिकल लेयर तक भेजा जाता है। Data Link Layer द्वारा Error Detection Bits का उपयोग किया जाता है। यह गलतियों को भी ठीक करती हैं। बाहर जाने वाले मैसेजेस फ्रेम्स में एकत्र होते हैं। उसके बाद सिस्टम ट्रांसमिशन के बाद प्राप्त होने वाली Acknowledgement की प्रतीक्षा करता है। यह मैसेज भेजने के लिए भरोसेमंद हैं।
Data Link Layer के कार्य:
- Framing: Frames नेटवर्क लेयर से Administrable Data Units में प्राप्त Bits का Flow है। Bits Flow का यह division डाटा लिंक लेयर द्वारा किया जाता है।
- Physical Addressing: यदि नेटवर्क पर विभिन्न सिस्टम्स में फ्रेम्स वितरित करने हों तो फ्रेम के Sender या Receiver के भौतिक एड्रेस के स्पष्ट करने के लिए डाटा लिंक लेयर फ्रेम में हेडर ऐड करती है।
- Flow Control: Flow control prevents a fast transmitter from running a slow receiver by buffering the extra bit provided by the flow control. This prevents traffic jams at the point of attaché.
- Error Control: फ्रेम के अंत में एक ट्रेलर लगाकर एरर कंट्रोल किया जाता है। इस प्रणाली के द्वारा फ्रेम के डुप्लीकेशन को भी रोका जाता है। डाटा लिंक लेयर्स फ्रेम्स को डुप्लीकेट होने से रोकती है।
- Access Control: इस लेयर का प्रोटोकॉल यह निर्धारित करता है कि जब दो या दो से अधिक डिवाइस एक ही लिंक से कनेक्ट हों तो किसी नियत समय पर लिंक के ऊपर किस डिवाइस का नियंत्रण होगा।
Layer 3: Network Layer:
इस लेयर का मुख्य उद्देश्य Networks के बीच, Source से Destination तक पैकेट्स को भेजना होता है। यदि दो Computers एक ही लिंक से कनेक्ट हों तो ऐसे में Network Layers की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यह नेटवर्क कंट्रोलर के रूप में कार्य करती है। यह सबनेट(Subnet) ट्रैफिक को प्रबंधित करता है। यह लेयर डाटा को ले जाने वाले मार्ग को निर्धारित करने का निर्णय करती है। यह भेजे जाने वाले मैसेजेस को पैकेट्स में विभाजित करती है और आने वाले मैसेजेस को High Levels के लिए असेम्बल करती है।
Network Layer के कार्य:
- यह लेयर पैकेट्स के भी छोटे पैकेट्स बनाती है।
- नेटवर्क लेयर में राउटर्स एवं गेटवे संचालित होते हैं। पैकेट्स को अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने के लिए रूटिंग हेतु, नेटवर्क लेयर द्वारा System Mechanism उपलब्ध कराया जाता है।
- नेटवर्क लेयर फ्लो कंट्रोल, एरर कंट्रोल एवं पैकेट सिक्वेंस कंट्रोल सहित कनेक्शन सर्विसेस भी उपलब्ध कराती है।
- यह Logical Network Address को Physical Address मे बदलती है।
Layer 4: Transport Layer:
Transport Layer का मुख्य उद्देश्य सारे Messages को Source से Destination तक पहुंचाना होता है। यह लेयर यह सुनिश्चित करती है कि सारे मैसेज सही क्रम से और सही जगह पहुंचे। Source से Destination तक इस लेवल पर Error Control एवं Flow Control को सुनिश्चित करती है। यह लेयर डाटा को छोटी-छोटी यूनिट्स में तोड़ती है जिससे कि नेटवर्क लेयर इन यूनिट्स को आसानी से Handle कर सके। यह लेयर गलतियों की जांच व फ्लो कंट्रोल्स के द्वारा मैसेज क्रमबद्ध रूप से पहुंचे।
Transport Layer के कार्य:
- Service Point Addressing: ट्रांसपोर्ट लेयर हेडर में सर्विस प्वाइंट एड्रेस होता है जो कि पोर्ट एड्रेस होता है। यह लेयर नेटवर्क लेयर के विपरीत कंप्यूटर पर सही प्रक्रिया के लिए मैसेज प्राप्त करती है, जो कि हर पैकेट को सही कंप्यूटर पर भेजता है।
- Segmentation and Reassembling: Message Segment में विभाजित होता है, हर सेगमेंट में क्रम संख्या होती है, जो मैसेज को दोबारा एकत्र करने में , इस लेयर को सक्षम बनाता है। Destination तक पहुंचने पर मैसेज सही रूप में एकत्र होता है और यह broadcast के दौरान खोए पैकेट्स को बदलती है।
- Flow Control: इस लेयर में Flow Control एक किनारे से दूसरे किनारे तक होता है।
- Error Control: इस लेयर के एक किनारे पर एरर कंट्रोल होता है जो कि यह सुनिश्चित करता है कि सारा डाटा बिना किसी गलती के अपने Destination तक पहुंच गया है या नहीं।
Layer 5: Session Layer:
इस लेयर का मुख्य उद्देश्य कम्यूनिकेट करने वाले सिस्टम के बीच परस्पर क्रिया-प्रक्रिया को बनाना, व्यवस्थित एवं Synchronize करना है। Session Layer दो भिन्न Applications के बातचीत को Manage और Synchronize करती है।
Session Layer के कार्य:
- Dialog Control: यह लेयर दो सिस्टम को Half Duplex या Full Duplex में परस्पर Communicate करने देती है।
- Synchronization: यह लेयर किसी भी प्रोसेस को Check Point से जोड़ती है जिसे डाटा की स्ट्रीम में Synchronization Point माना जाता है। जैसे मान लीजिए कि आपके पास 200 पेजों की किताब है और आप उसे रोज पढ़ते हैं तो मान लीजिए कि आपने 50 पेज तक पढ़ लिया है तो आप वहां पर आप कोई पेन या फिर पेज को फोल्ड कर देते हैं जो इस बात का संकेत होता है कि आपने यहां तक पढ़ लिया है और अगले दिन आप उसी मार्क से आगे पढ़ते हैं तो यह मार्क चेक प्वाइंट कहलाता है। इसे ही Synchronization भी कहते हैं। ठीक उसी तरह डाटा पैकेट्स में भी होता है। जो पैकेट पहुंच गया है वहां पर चेक प्वाइंट बन जाता है और इस बात की पुष्टी भी कर ली जाती है कि जहां पर चेक प्वाइंट बनाया है वहां पर सारे पैकेट्स अपने Destination प्वाइंट तक पहुंच गये हैं।
Layer 6: Presentation Layer:
इस लेयर का मुख्य कार्य दो कम्प्यूटर्स के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के सिन्टेक्स एवं सिमैन्टिक्स का रख-रखाव करना है। Presentation Layer नजर रखती है कि डाटा इस प्रकार भेजा जाए कि Receiver डाटा को समझ सके और डाटा का प्रयोग कर सके। Communication Systems के बीच की Language (Syntax) अलग-अलग हो सकते हैं। इस स्थिति में Presentation Layer एक Translator की भूमिका निभाता है।
Presentation Layer के कार्य:
- Translation: इस लेयर में किसी भी डाटा को Transmit करने से पहले बिट्स फ्लो में बदला जाता है। इसमें अलग अलग कम्प्यूटर्स अलग-अलग Encoding Techniques का उपयोग करते हैं। यह नेटवर्क कम्प्यूटर के फॉर्मेट की आवश्यकतानुसार डाटा का अनुवाद करती है।
- Encryption: यह Transmitter पर Encryption और Receiver पर Decryption करता है।
- Compression: यह Transmit किये जाने वाले डाटा की Bandwidth को कम करने के लिए डाटा को Compress करता है। इस लेयर का मुख्य कार्य Transmit की जाने वाली बिट्स को कम करना होता है। यह Audio, Video, Text आदि Multimedia के Transmission में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Layer 7: Application Layer:
इस लेयर में यूजर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है। यह OSI Model की सबसे ऊपरी लेयर है। यहां पर अलग-अलग Techniques के माध्यम से डाटा को रखा जाता है। जिससे User या Software सरलता से नेटवर्क से संपर्क कर सके। इस Techniqes के द्वारा दी जाने वाली सेवाएं- E-Mail, Files Trasnfer, User Results, Directory Services, Network Resources आदि।
Application Layer के कार्य:
- Mail Services: यह लेयर ईमेल फॉरवर्ड एवं स्टोरेज करने के लिए आधार प्रदान करती है।
- Network Virtual Terminal: इससे यूजर को रिमोट होस्ट को log on करने में मदद मिलती है।
- Directory Services: यह विभिन्न सेवाओं के बारे में वैश्विक सूचना हेतु एक्सेस करने देती है।
- File Transfer, Access and Management(FTAM): यह फाइलों को एक्सेस एवं मैनेज करने का Standard है। Users दूर स्थित कम्प्यूटर को एक्सेस और मैनेज कर सकते हैं। ये दूरस्थ कंप्यूटर से फाइलों भी हासिल कर सकते हैं।
TCP/IP Model
TCP/IP का आशय Transmission Control Protocol एवं Internet Protocol है। यह नेटवर्क मॉडल प्रस्तुत इंटरनेट आर्किटेक्चर में भी उपयोग किया जाता है। प्रोटोकॉल्स नियमों का वह समूह है जो नेटवर्क पर हर संभव संचार को संचालित करता है। ये प्रोटोकॉल Source से Destination या Internet के बीच डाटा के आवागमन को स्पष्ट करता है। ये प्रोटोकॉल्स साधारण नाम संबंधी Naming एवं Addressing स्कीम्स उपलब्ध कराते हैं।
Layers in TCP/IP Model
Host to Network Layer:
- यह सबसे निचली लेयर है।
- Host से कनेक्ट होने में Protocol का उपयोग होता है, जिससे उस पर डाटा पैकेट्स भेजे जा सकें।
- यह Host से Host और Network से Network में अलग-अलग हो सकता है।
Internet Layer:
- Connectionless Internet Work Layer पर आधारित Packet Switching Network का चयन Internet Layer कहलाता है।
- यह लेयर सारे Architecture को एक साथ रखती है।
- यह लेयर पैकेट को स्वतंत्र रूप से Destination तक जाने में मदद करती है।
- जिस क्रम में पैकेट्स भेजे जाते हैं , उस क्रम में प्राप्त नहीं होते हैं।
- इस लेयर में Internet Protocol का उपयोग होता है।
Transport Layer:
- यह लेयर निर्धारित करती है कि डाटा का ट्रांसमिशन Single Path पर होना चाहिए या Parallel Path पर होना चाहिए।
- इस लेयर द्वारा डाटा पर Multiplexing, Segmenting या Splitting जैसे कार्य किये जाते हैं।
- यह लेयर डाटा में Header Add करती है।
- यह लेयर डाटा को छोटी-छोटी यूनिट्स में तोड़ती है ताकि नेटवर्क लेयर आसानी से कार्य कर सके।
- यह लेयर भेजे जाने वाले पैकेट्स का Sequence बनाती है।
Application Layer:
- TELNET(TeleNetwork) – यह रिमोट मशीन से कनेक्ट होने में मदद करता है और उस पर एप्लीकेशन रन करता है।
- FTP(File Transfer Protocol): किसी भी नेटवर्क पर कनेक्ट हुए यूजर्स के बीच फाइल ट्रांसफर करने में मदद करता है।
- SMTP(Simple Mail Transfer Protocl): एक निर्धारित पाथ पर Source से Destination के बीच ईमेल भेजने में प्रयोग होता है।
- DNS(Domain Name Server): किसी नेटवर्क पर कनेक्ट हुए Hosts के लिए IP Address को टेक्स्ट रूपी Addresss में बदलता है।
Merits of TCP/IP Model
- यह स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
- यह Scalable है।
- इसमें Client/Server Architecture पर कार्य करता है।
- यह कई Routing Protocols को सपोर्ट करता है।
- दो कम्प्यूटरों के बीच कनेक्शन स्थापित करने में उपयोग हो सकता है।
Demerits of TCP/IP Model
- इसमें Transport Layer पैकेट्स की डिलीवरी की गारंटी नहीं देती है।
- इस मॉडल को किसी अन्य एप्लीकेशन में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
- प्रोटोकॉल को बदलना आसान नहीं है।
- यह अपनी सेवाओं, इंटरफेस एवं प्रोटोकॉल्स को स्पष्ट तौर पर अलग नहीं करता है।
आपने क्या सीखा-
दोस्तों, इस पोस्ट में हमने OSI Model और TCP/IP Model के बारे समझाने का प्रयास किया है। यह नेटवर्किंग का सबसे महत्पूर्ण टॉपिक होता है। इससे कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं। चाहें आपका कम्प्यूटर से सम्बन्धिक कोई भी परीक्षा हो। दोस्तों, उम्मीद करते हैं कि इस पोस्ट से आपने कुछ नया सीखा होगा। अगर यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो इस पोस्ट ज्यादा से ज्यादा शेयर व लाइक करे। अगर आप कम्प्यूटर से सम्बन्धित किसी टॉपिक पर पोस्ट चाहते हों तो हमें कमेंट जरूर करें। हमारा यही प्रयास रहेगा कि हम आपके पोस्ट को जल्द से जल्द अपने ब्लॉग में प्रकाशित करेंगें।
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